हज़रत इमाम ज़ैनुल आबिदीन
रज़ी अल्लाह ताला अनहु
आप की विलादत बासआदत १५ जमादी उलअव्वल या १५ जमादी एलिसानी ३८ हिज्री को हुई ।आप का इस्म गिरामी अली बिन उल-हुसैन था लेकिन आप इमाम ज़ैनुल आबिदीन रज़ी अल्लाह ताला अनहु के नाम से मशहूर हैं, इमाम हुसैन रज़ी अल्लाह ताला अनहु के वो फ़र्ज़ंद थे जो वाक़ाह-ए-कर्बला में ज़िंदा बच गए थे और उन्हें क़ैदीयों के क़ाफ़िले और शहीदों के सुरों के साथ दमिशक़ ले जा कर यज़ीद के दरबार ले जाया गया था।
आप रज़ी अल्लाह ताला अनहु की वालिदा का नाम शहर बानो था जो ईरान के बादशाह यज़दगरद सोम की बेटी थीं जो नौशेरवाँ आदिल का पोता था। आप के मशहूर अलक़ाब में ज़ैनुल आबिदीन और सय्यद-ए-सज्जाद शामिल हैं।उस वक़्त उन के दादा हज़रत अली करम वजहा मुस्लमानों के ख़लीफ़ा थे। आपऒ का नाम आप के दादा के नाम पर अली रखा गया जबकि कुनिय्यत अबुलहसन और अबु-अल-क़ासिम रखी गई।
विलादत के चंद दिन बाद आप की वालिदा का इंतिक़ाल हो गया जिस के बाद आप की ख़ाला गैहान बानो जो मुहम्मद बिन अबी बकरऒ की ज़ौजा थीं और उन्हों ने मुहम्मद बिन अबी बकरऒ के इंतिक़ाल के बाद शादी नहीं की थी, ने आप की परवरिश की। दो साल की उम्र में आप के दादा हज़रत अली इबन अबी तालिब अलैहिस्सलाम को शहीद कर दिया गया।
आप का ज़ुहद-ओ-तक़वा मशहूर था। वुज़ू के वक़्त आप का रंग ज़र्द हो जाता था। पूछा गया तो फ़रमाया कि मेरा तसव्वुर-ए-कामिल अपने ख़ालिक़-ओ-माबूद की तरफ़ होता है और इस के जलालत-ओ-रोब से मेरी ये हालत हो जाती है। नमाज़ की हालत ये थी कि पांव खड़े रहने से सूज जाते और पेशानी पर गट्ठे पड़े हुए थे और रात जागने की वजह से रंग ज़र्द रहता था।अल्लामा इबन तलहा शाफ़ई के मुताबिक़ नमाज़ के वक़्त आप का जिस्म लर्ज़ा बरानदाम होता था। सजदों की कसरत से आप का नाम सय्यद एलिसा जिद्दैन और सज्जाद पड़ गया था।
अल्लामा इबन हिज्र मकीऒ ने लिखा कि एक दफ़ा किसी शख़्स ने आप के सामने आप की बुराई की मगर आप ख़ामोश रहे तो उस शख़्स ने कहा कि ए अली इबन उल-हुसैन ऒमीं आप से मुख़ातब हूँ तो आप ने फ़रमाया कि मेरे रसूल सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला-ओ-सल्लम ने फ़रमाया है कि जाहिलों की बात की पर्वा ना करो और में इस पर अमल कर रहा हूँ। एक शामी ने हज़रत अली करम अल्लाह वजहा को आप के सामने गालियां दें तो आप ने फ़रमाया कि ए शख़्स तो मुसाफ़िर मालूम होता है अगर कोई हाजत है तो बता। इस पर वो शख़्स सख़्त शर्मिंदा हो कर चला गया।
आप की शादी ५७ हिज्री में आप के चचा हज़रत हुस्न बिन अली बिन अबू तालिब की बेटी हज़रत फ़ातिमा से हुई। आप के ग्यारह लड़के और चार लड़कीयां पैदा हुईं। जिन में से हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर रज़ी अल्लाह ताला अनहु और हज़रत जै़द शहीद मशहूर हैं।
कर्बला का हादिसा १०मुहर्रम ६१ हिज्री बमुताबिक़ अक्तूबर ६८९ ईसवी को पेश आया। २८ रजब ६० हिज्री को आप अपने वालिद हज़रत हुसैन इबन अली के हमराह मदीना से मक्का आए और फिर चार माह बाद २मुहर्रम ६१ हिज्री को कर्बला आए। कर्बला आने के बाद आप इंतिहाई बीमार हो गए यहां तक कि १० मुहर्रम को ग़शी की हालत तारी थी इस लिए इस काबिल ना थे कि मैदान में जा कर दर्जा शहादत पर फ़ाइज़ होते।१० मुहर्रम की शाम को तमाम ख़ेमों को आग लगा दी गई और आप को आप की फूफी हज़रत ज़ैनब बिंत अली सलाम अल्लाह अलैहा ने सँभाला। ११ मुहर्रम को आप को ऊंट के साथ बांध कर और लोहे की ज़ंजीरों में जकड़ कर पहले कूफ़ा और बाद में दमिशक़ रवाना किया गया। तमाम शुहदा बिशमोल इमाम हुसैन रज़ी अल्लाह ताला अनहु के सर नेज़ों की नोकों पर साथ रवाना किए गीए। ख़ानदान-ए-रिसालत का ये क़ाफ़िला १६ रबी उलअव्वल ६१ हिज्री को दमिशक़ पहुंचा और दरबार-ए-यज़ीद में रस्सीयों और ज़ंजीरों में बंधा हुआ पेश किया गया। एक साल की क़ैद के बाद आप ८ रेबा उलअव्वल ६२ हिज्री को मदीना वापिस आए और तमाम उम्र ख़ानदान-ए-रिसालत की शहादत पर गिरिया कुनां रहे। उन की बहन और रसूल अकरम सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला-ओ-सल्लम की नवासी हज़रत ज़ैनब सलाम अल्लाह अलैहा के तमाम बाल सफ़ैद हो गए थे और ख़ुद उन की हालत अच्छी ना थी। आप से जब पूछा जाता कि आप को सब से ज़्यादा मुसीबत का सामना कहाँ करना पड़ा तो आप फ़रमाते अलशाम अलशाम अलशाम (दमिशक़ को अलशाम कहा जाता था)। आप को इस बात किस शदीद दुख था कि आप की बहन और रसूल अकरम सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला-ओ-सल्लम की नवासी हज़रत ज़ैनब सलाम अल्लाह अलैहा को नंगे सर यज़ीद जैसे फ़ासिक़ के दरबार में खड़ा होना पड़ा अहल-ए-मदीना ने इस के बाद यज़ीद की बैअत तोड़ दी और इस के ख़िलाफ़ बग़ावत कर दी।
आप के बाअज़ ख़ुतबात बहुत मशहूर हैं। वाक़िया कर्बला के बाद कूफ़ा में आप ने पहले ख़ुदा की हमद-ओ-सना और हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सिल्ली अल्लाह अलैहि-ओ-आला-ओ-सल्लम के ज़िक्र-ओ-दरूद के बाद कहा कि ए लोगो जो मुझे पहचानता है वो तो पहचानता है जो नहीं पहचानता वो पहचान ले कि में अली इबन उल-हुसैन इबन अली इबन अबी तालिब हूँ। में इस का फ़र्ज़ंद हूँ जिस की बेहुर्मती की गई जिस का सामान लूट लिया गया।जिस के अहल-ओ-अयाल क़ैद कर दिए गए। में इस का फ़र्ज़ंद हूँ जिसे साहिल-ए-फुरात पर ज़बह कर दिया गया और बगै़र कफ़न-ओ-दफ़न के छोड़ दिया गया। और शहादत-ए-हुसैन हमारे फ़ख़र के लिए काफ़ी है ।
वाक़ाह-ए-कर्बला के बाद दूसरा बड़ा सानिहा मदीना पर शामी अफ़्वाज की चढ़ाई थी जिस में उन्हें कामयाबी हासिल हुई और मदीना में क़तल-ए-आम किया गया। ये अफ़सोसनाक वाक़िया ६३ हिज्री में पेश आया और वाक़ाह-ए-हुर्रा कहलाता है। मदीना वालों ने यज़ीद के ख़िलाफ़ बग़ावत कर के इस के गवर्नर को मुअत्तल कर दिया। यज़ीद ने मुस्लिम बिन उक़बा को जो अपनी सफ़्फ़ाकी के लिए मशहूर था अहल-ए-मदीना की सरकूबी के लिए रवाना किया। उस की भेजी हुई अफ़्वाज ने दस हज़ार से ज़ाइद अफ़राद को शहीद किया। ख़वातीन की बेहुर्मती की गई और तीन दिन तक मस्जिद नबवी में नमाज़ ना हो सकी।तमाम लोगों से यज़ीद की ज़बरदस्ती बैअत ली गई और जिस ने इनकार क्या इस का सर क़लम किया गया। सिर्फ़ दो आदमीयों से बैअत तलब करने की जुरात ना की गई जो हज़रत अली इबन उल-हुसैन और हज़रत अबदुल्लाह इबन अब्बास थे।
इस वाक़िया के वक़्त मरवान बिन हुक्म जो अहल-ए-बैत का मशहूर दुश्मन था उस को ख़तरा महसूस हुआ लेकिन उस को और इस के अहल-ए-ख़ाना को किसी ने पनाह ना दी मगर वो एक कोशिश के लिए हज़रत अली इबन उल-हुसैन के पास आया और पनाह तलब की तो आप ने ये ख़्याल किए बगै़र कि इस ने वाक़िया कर्बला के सिलसिले में खुली दुश्मनी दिखाई थी उसे और इस के अहल-ए-ख़ाना को पनाह दी और उस को बच्चों को अपने बच्चों और हज़रत उसमान रज़ी अल्लाह अन्ना की बेटी आईशा के हमराह मंबा के मुक़ाम पर भेज दिया और मुकम्मल हिफ़ाज़त की। मुस्लिम बिन उक़बा जो इस फ़ौज का सालार था जिस ने मदीना को तबाह-ओ-बर्बाद क्या, इस ने ख़ानदान-ए-रिसालत बिशमोल हज़रत अली इबन उल-हुसैन की ख़ूब खुल कर बुराईयां कीं मगर जब हज़रत अली इबन उल-हुसैन का सामना हुआ तो अदब से खड़ा हो गया। जब इस से पूछा गया तो इस ने कहा कि मैंने क़सदन ऐसा नहीं किया बल्कि उन के रोब-ओ-जलाल की वजह से मजबूरन ऐसा किया।
मरवान इबन अलहकम के मरने के बाद ६५ हिज्री में अबदालमलक बिन मरवान तख़्त नशीन हुआ। इस ने हुज्जाज बिन यूसुफ़ को हिजाज़ का गवर्नर बना दिया क्योंकि हुज्जाज ने अबदुल्लाह बिन ज़बीरओ को क़तल कर के हिजाज़ पर क़बज़ा किया था। हुज्जाज ने काअबा पर संगबारी की थी और उसे तबाह कर दिया था हती कि उस की दुबारा तामीर की ज़रूरत पेश आई। उस वक़्त अबदालमलक बिन मरवान ने हुज्जाज बिन यूसुफ़ को हुक्म दिया था कि हज़रत अली इबन अलहसीनओ को गिरफ़्तार कर के शाम पहुंचा दिया जाये चुनांचे इस ने उन्हें ज़ंजीरों से बांध कर मदीना से बाहर एक ख़ेमा में रखवाया।
अल्लामा इबन हिज्र मुक्की के मुताबिक़ अबदालमलक बिन मरवान को कुछ लोगों ने समझाया कि हज़रत अली इबन अलहसीनओ ख़िलाफ़त से कोई ग़रज़ नहीं रखते इस लिए उन्हें ना छेड़ा जाये। अबदालमलक बिन मरवान ने हुज्जाज को पैग़ाम दिया कि बनी हाशिम को सताने और उन का ख़ून बहाने से परहेज़-ओ-इजतिनाब करो क्योंकि बनी अमय के अक्सर बादशाह उन्हें सत्ता कर जल्द तबाह हो गए। इस के बाद उन्हें हुज्जाज ने छोड़ दिया और अबदालमलक बिन मरवान की ज़िंदगी में ज़्यादा तंग ना किया गया। जब हुज्जाज ने काअबा को तबाह किया और उस की दुबारा तामीर हुई तो हज्र-ए-असवद को नसब करने का मसला हुआ क्योंकि जो कोई भी उसे नसब करना चाहता था तो हज्र-ए-असवद मुतज़लज़ल और मुज़्तरिब रहता और अपने मुक़ाम पर ना ठहरता। बिलआख़िर हज़रत अली इबन उल-हुसैन ज़ैनुल आबिदीन ने उसे बिसमिल्लाह पढ़ कर नसब किया तो बख़ूबी नसब हो गया।
अगरचे आप गोशा नशीन थे और ख़िलाफ़त की ख़ाहिश ना रखते थे मगर हुकमरानों को उन के रुहानी इक़तिदार से भी ख़तरा था और ख़ौफ़ था कि कहीं वो ख़ुरूज ना करें। चुनांचे वलीद बिन अबदालमलक ने ९५ हिज्री में आप को ज़हर दे दिया और आप २५ मुहर्रम-उल-हराम ९५ हिज्री बमुताबिक़ ७१४ ईसवी को दर्जा-ए-शहादत पर फ़ाइज़ हो गए।आप की तदफ़ीन जन्नतुलबक़ी में की गई